प्रेग्नेंसी में हो गया है डायबिटीज (Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej) तो जानें लक्षण, कारण और बचाव, ऐसे रखें खुद का ख्याल

Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej: जेस्टेशनल डायबिटीज यानी गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने के मामले पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़े हैं। गर्भवती महिला और शिशु दोनों के लिए यह क्यों है खतरनाक और कैसे इससे बचें, बता रही हैं

प्रेग्नेंसी में हो गया है डायबिटीज (Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej)

अपनी गर्भावस्था का आनंद ले रही थीं। खानपान के मामले में हर कोई उन्हें उनकी पसंद की चीज परोस रहा था और वे चटकारे लेकर खा रही थीं। प्रेग्नेंसी में आराम भी जरूरी है, इसलिए व्यायाम का साथ वो पूरी तरह से छोड़ चुकी थीं।

तभी प्रेग्नेंसी के छठे महीने में हुए डायबिटीज के टेस्ट ने उनकी नींद उड़ा दी। वो जेस्टेशनल डायबिटीज की जद में आ चुकी थीं। अच्छी बात यह रही कि सही समय पर जेस्टेशनल डायबिटीज की पहचान होने के कारण डॉक्टर सही आहार, व्यायाम और जीवनशैली की मदद से न सिर्फ उनके डायबिटीज को नियंत्रित करने में सफल रहे बल्कि बच्चे का जन्म भी सकुशल हो गया।

पिछले दो दशकों में महिलाओं में टाइप-1 और टाइप- 2 ही नहीं, जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा भी लगातार बढ़ रहा है। जेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था में किसी भी महिला को प्रभावित कर सकती है, लेकिन ज्यादा वजन वाली गर्भवती महिलाएं इसकी चपेट में ज्यादा आती हैं। इससे टाइप 2 डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है।

जेस्टेशनल डायबिटीज, डायबिटीज का एक प्रकार है, जो केवल गर्भावस्था के दौरान ही विकसित होता है और बच्चे के जन्म के बाद ठीक हो जाता है। यह तब होती है, जब गर्भावस्था के दौरान शरीर शुगर के स्तर को प्रभावकारी तरीके से नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का निर्माण नहीं कर पाता है। आमतौर पर जेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जेस्टेशनल डायबिटीज भविष्य में मां और गर्भस्थ शिशु दोनों में डायबिटीज-2 की आशंका को बढ़ा देती है।

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Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej: मोटापा बढ़ा देता है खतरा

जेस्टेशनल डायबिटीज उन महिलाओं को अधिक होती है, जिनका वजन सामान्य से अधिक होता है। आमतौर पर प्रसव के बाद स्थिति सामान्य हो जाती है, लेकिन शुगर का उच्च स्तर गर्भावस्था और गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत को प्रभावित कर सकता है और भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज का कारण बन सकता है।

अक्तूबर, 2024 में द लैंसेट पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, गर्भवती महिला के वजन और जेस्टेशनल डायबिटीज में गहरा संबंध है। गर्भवती महिला के वजन को सामान्य सीमा में रखा जाए, तो जेस्टेशनल डायबिटीज के आधे मामलों को रोका जा सकता है। जिन गर्भवती महिलाओं का बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) 30 से अधिक होता है, उनके लिए खतरा बढ़ जाता है। ऐसा इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण होता है। शरीर का भार अधिक होना, विशेष रूप से पेट के आसपास चर्बी होने के कारण शरीर के लिए इंसुलिन को प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है।

Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej: गर्भावस्था के दौरान, प्लेसेंटा हार्मोन्स का निर्माण करता है, जिससे शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कम प्रतिक्रिया देने लगती हैं और रक्त में शुगर का स्तर अधिक हो जाता है। अगर महिला अत्यधिक वजन के कारण, गर्भावस्था के पहले से ही इंसुलिन रेजिस्टेंस होती है तो गर्भावस्था के दौरान, इंसुलिन की बढ़ी हुई मांग, रक्त में शुगर के सामान्य स्तर को बनाए रखने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती है, जिसका परिणाम जेस्टेशनल डायबिटीज के रूप में आता है।

Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej: जीवनशैली से सुधरेगा शुगर

Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej)
जीवनशैली से सुधरेगा शुगर

Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej: 2020 में न्युट्रिएंट्स नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, जिन महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज के मामले पता चलते हैं, उनमें से 70-85 प्रतिशत मामलों में केवल जीवनशैली में परिवर्तन करने से ही शुगर के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है। शुगर को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में किस तरह के बदलाव लाएं, आइए जानें:

संतुलित भोजन: जेस्टेशनल डायबिटीज से बचने के लिए गर्भावस्था के दौरान संतुलित भोजन का सेवन करना चाहिए, जिसमें साबुत अनाज, लीन प्रोटीन्स, सब्जियां, स्वस्थ वसा आदि शामिल हों। ये रक्त में शुगर के संतुलित स्तर को बनाए रखने में सहायता करते हैं। उन खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जिनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम हो, जिनका पाचन व अवशोषण धीमा हो, ताकि रक्त में शुगर के स्तर को तेजी से ऊपर जाने से रोका जा सके।

नियमित शारीरिक गतिविधियां: नियमित रूप से वर्कआउट करना शरीर की इंसुलिन को इस्तेमाल करने की क्षमता को बेहतर बनाकर रक्त में शुगर के स्तर को कम करने में सहायता कर सकता है। अधिकतर गर्भवती महिलाओं के लिए, चलना, तैरना और प्री-नैटल योग व्यायाम के सुरक्षित विकल्प हैं।

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थोड़ी मात्रा में, बार-बार खाएं: थोड़ी मात्रा में, बार-बार खाने से रक्त में शुगर के स्तर में तेज उतार-चढ़ाव को रोकने में सहायता मिलती है। दो भोजन के बीच लंबे अंतराल से बचने से हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त में शूगर का स्तर कम होना) और हाइपरग्लाइसीमिया (रक्त में शूगर का स्तर अधिक होना) के खतरे को कम किया जा सकता है।

भोजन हो फाइबर से भरपूर: फाइबर रक्त के प्रवाह में शुगर के अवशोषण को धीमा करता है। फाइबर से भरपूर भोजन जैसे सब्जियों, फलियों, फलों और साबुत अनाजों को अपने भोजन में शामिल करें।

नमी की न हो कमी: रक्त में शुगर की मात्रा संतुलित रखने के लिए हर दिन आठ से दस गिलास पानी जरूर पिएं। शरीर में पानी की कमी से शरीर को रक्त से अतिरिक्त शुगर को निकालने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

स्वस्थ वसा का करें सेवन: अपनी डाइट में स्वस्थ वसा जैसे सूखे मेवों, बीजों और जैतून के तेल को शामिल करें, इससे रक्त में शुगर के स्तर के प्रबंधन में सहायता मिलती है। ये वसा के पाचन और कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को धीमा करती है, जिससे शुगर का स्तर तेजी से नहीं बढ़ता है।

तनाव का प्रबंधन: तनाव से स्ट्रेस हार्मोन्स जैसे कोर्टिसोल का स्राव बढ़ जाता है, इससे रक्त में शुगर का स्तर बढ़ता है, जो इंसुलिन की कार्यप्रणाली में बाधा डालते हैं। तनाव को नियंत्रण में रखने के लिए, तनाव के प्रबंधन की तकनीकों जैसे ध्यान, डीप ब्रीदिंग या प्री-नैटल मसाज आदि का सहारा लें।

Pregnensee Mein Ho Gaya Hai Daayabiteej: क्या होता है खतरा?

वैसे तो डायबिटीज से पीड़ित महिलाएं स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। पर, अगर गर्भावस्था में शुगर की मात्रा को नियंत्रित न किया जाए तो परेशानी बढ़ सकती है। जेस्टेशनल डायबिटीज से मां और बच्चे को क्या-क्या खतरा हो सकता है, आइए जानें:

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अतिरिक्त ग्लूकोज प्लेसेंटा के माध्यम से बच्चे के अग्नाश्य में जा सकता है, जिससे इंसुलिन का निर्माण बढ़ सकता है। इससे बच्चे का भार और आकार सामान्य से अधिक बढ़ सकता है, जिसे मैक्रोसोमिया कहते हैं। इसके कारण सामान्य प्रसव में समस्याएं आती हैं।

जिन गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज होती है, उनके बच्चों में आगे चलकर मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका बढ़ जाती है।

गर्भावस्था के दौरान रक्त में शुगर के अनियंत्रित स्तर से गर्भपात हो सकता है। गर्भ में ही या जन्म के तुरंत बाद बच्चे की मृत्यु हो सकती है।

जन्म के बाद बच्चे को सांस की तकलीफ हो सकती है, उसका शुगर लेवल बढ़ सकता है और उसे पीलिया भी हो सकता है।

नजर रखिए इन लक्षणों पर

अकसर जेस्टेशनल डायबिटीज में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं, जिन्हें पहचानना मुश्किल होता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान अकसर इसकी पहचान रुटीन ग्लूकोज स्क्र्रींनग में होती है। हालांकि, कुछ महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज के निम्न लक्षण अनुभव कर सकती हैं:

अत्यधिक प्यास लगना

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बार-बार पेशाब आना

थकान

नजर धुंधली होना

बार-बार मूत्राशय, योनि और त्वचा का संक्रमण होना

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